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वो गाती है कोई गीत

सोमवार, 9 मार्च 2009

उस,
रात जब बादल में चाँद खेल रहा था
पूल में झिलमिलाते पानी पर उतराती
आग लगाती जवानी

वो,
शायद इस शहर में कभी
अपने नाम से भी पहचानी गई हो
उस, अंधेरे कोने में
जहाँ कोई किसी को भी नही पहचान सकता हो
वह,
सज संवरकर गाती है
गजलें / विरह भरे गीत
और, बटोर लेती है सहानुभूति
गुनगुनाते हुये

वो,
जो अपने गमों से बेजार
उतर जाना चाहते थे
कुछ घूंट नशे में थिरकने लगते है
भूलने लगते हैं
सबकुछ वो सब जो हुआ है
दिनभर

बस,
शाम है गुनगुनी /
पूल का पानी है /
थिरकती जवानी है ./
गुनगुनाती हुई वो है /
गले नीचे उतरता जाम है
बाकी जो भी था
वो या तो ठीक है या हो जायेगा
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०९-मार्च-२००९ / समय : ११:०० रात्रि / घर

2 टिप्पणियाँ

रंजू भाटिया ने कहा…

बाकी जो भी था
वो या तो ठीक है या हो जायेगा

इसी उम्मीद में ज़िन्दगी के लम्हे बीत जाते हैं ..बहुत सुन्दर लगता है आपका लिखा हुआ .जिन्दगी के करीब का ,शुक्रिया

12 मार्च 2009 को 1:22 pm बजे
अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर! बेहतरीन! अच्छा लगा इसे पढ़ना!

12 मार्च 2009 को 9:52 pm बजे