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सांप में बदली हुई चाबुक

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

बैल,
तभी तक मस्त रह सकता है
जब तक वह जुटाये रखता है
हिम्मत / साहस कि
कोई छू नही सकता उसकी गर्दन
या, जब तक वह नही मान लेता
कोल्हू को नियति

एक बार,
कोल्हू में क्या पिरा
फिर कहाँ चैन
बस दिन रात घूमना ही है
खली, चंदी, चारा, हवा, पानी
सभी कुछ होता है
सिवाय एक आजादी के

अब,
उसे पता ही नही चलता कि
कब सुबह हुई थी कब शाम ढली
ना खूंटे पर लौटने की चिंता
ना जंगल जाने की फिक्र
मीलों की दुरियाँ सिमट आती है
तंग दायरे में /
जीवन भर के सफर में

कुछ दिनों के बाद,
आदत सी सवार हो जाती है उसे
अब कोल्हू, कांधो पर हो ना हो
बस घूमता ही रहता है
नींद में भागता है
पीठ पे उभरती रहती हैं लहरें रह रहकर
जैसे चाबुक बदल कर सांप में
उतर आयी हो उसकी पीठ में
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २५-दिसम्बर-२००८ / समय : ११:१० रात्रि / घर

3 टिप्पणियाँ

daanish ने कहा…

RACHNA PR BADHAAEE TO HAI HI...

NAV VARSH 2009 KI
SHUBH KAAMNAAYEI SVIKAAREIN

---MUFLIS---

31 दिसंबर 2008 को 6:09 pm बजे

shri Tiwari Ji
Namaskar,
Maini apki poems dekhi. tino hi bahot hi acchi hai. yadi ap like kari tou KATHA Chakra ka liyai bhi kuch bhaj sakti hai. apka Bahot hi abhari rahunga
Indore ka Dr. yogendra Nath Shukla aur Shri Pratap Singh Sodi Meri acchi friend hai. Shri Raj Kumar Kumbhaj ko maini Katha Chakra mai moka dia hai.

Dhanyabad.
Akhilesh Shukla
Katha Chakra

31 दिसंबर 2008 को 8:11 pm बजे
sarita argarey ने कहा…

आपकी सभी रचनाएं काबिले तारीफ़ होती हैं । साधारण लहज़े में असाधारण बात कह जाना रचनाओं की खूबी है । नए साल में इसी तरह काव्य धारा अनवरत प्रवाहमान रहे । इसी कामना के साथ नववर्ष मुबारक ।

31 दिसंबर 2008 को 11:15 pm बजे