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ज़मीन से पैदा होते भाई

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

शायद,
वो तमाचा मैं
नही भूल पाऊंगा जिन्दगी भर
जब भी गुजरता हूँ
उस गली से याद आ जाता है

उस दोपहर
मुझे जाना था कहीं
जल्दी सवार थी सिर पर
और मन भाग रहा था समय से तेज
तभी अचानक कोई टकराया
मेरी साईकिल से
शायद बच्चा था कोई
इसके पहले कि मैं संभालू खुद को
और पूछू उसका हाल
जमीन से पैदा हो आये भाई लोग
मेरी सफ़ाई पहुँचती उन तक
इसके पहले ही रसीद कट गई गाल पर
यूँ लगा कि आग रख दी हो किसी ने
या खून में हो आया उबाल

वैसे,
यह नस्ल मायावी होती है
बस देखते ही देखते
उग आते हैं भाई लोग किसी सूनी सड़क पर
और जुट आते है सेवा में
बिना किसी इनविटेशन के
यदि किसी मामले में इनवाल्व हो
कोई महिला तो इनकी हमदर्दी दिखाती है
सदाचार ऊंचाईयाँ
इनकी पास मिल जायेगी
बचा के रखी हाथ की खुजली
मुँह में दबी हुई गालियाँ

आप,
जब भी निकल रहो हो जल्दी में
तो थोड़ा ध्यान रहे
कोई सूनी सड़क/गली बांझ नही होती
जरा कहीं चूके तो
उगल के रख देगी फ़ौज भाईयों की
और किसी का तमाचा याद रहेगा
जिन्दगी भर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २६-नवम्बर-२००८ / समय : १०:०० रात्रि / घर