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कपड़ों का कमतर होना

बुधवार, 5 नवंबर 2008

मैं,
इसे डेव्हलपमेंट कहूँ/
बेशर्मी की हद/
या दिमाग बंद कर की गई नकल
खैर जो भी हो
यहाँ जो हमारा था
वो सिमट रहा है

फ़ैशन
जिसमें नंगाई सिर चढ़ कर बोल रही है
अब उस किस्म की अंग्रेजी फ़िल्में
जो देखी तो जाती है पर समझी नही
उतर आयी है सड़कों पर
कपड़े कम से कमतर हो रहे है
लो वेस्ट हों या शार्ट हों या मिनी
या उसके आगे की कोई इकाई
मिनिमल होते जा रहे हैं
गिरते चरित्र के साथ
कपडे़ उपर उठ रहे हैं
या उपर से सरक रहे हैं

बच्चों
से हूई शुरुआत
अब ढालने लगी है आदतें
यह कपड़े अब बच्चें पहने या बड़े
पहनने वाले को कोई फ़र्क नही पड़ता
अलबत्ता देखने वाला
यदि जी रहा है गुजश्ता सदी में तो
झुका लेता है सिर या फ़ेर लेता है आँखे
और यदि अभ्यस्त है तो झांकने लगता है और गहरे
या कामना करने लगता है
तेज हवा चलने की/
अचानक बारिश होने की/
या सिलाई के टूटने की

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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०२-नवम्बर-२००८ / समय : रात्रि १०:४५ / घर